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Showing posts from October, 2019

अपने अपने मायने

बैठा था में उस किनारे औरों से थोड़ा दूर, थोड़ा परे, सामने मेरे थी बिखरती हुई लहरें लग रहा था की समय बस यही पे ठहरे। लहरों की वो लयबद्ध आवाज़ शांति का एहसास दिला रही थी, आनेवाली संध्या का साज देखने आँखें क्षितिज पे मेरी टिकी हुई थी। धीरे धीरे सूरज समंदर की तरफ बढ़ रहा था आकाश के चित्रपटल पे नए रंगों का जन्म हो रहा था, अपनी किरणों की कुँचियों को बेफिक्री से चलाए वो अपनी कलाकारी की अद्भुत छाप छोड़ रहा था। प्रकृति की वो शानदार रचना लेकिन मन को मेरे खाए जा रही थी, उस चित्र की क्षणिक सुंदरता मुझे एक अजीब मायूसियत से भर रही थी। लग रहा था ये सूरज कभी डूबे ही नहीं ये चित्र कभी आँखों के सामने से हटे ही नहीं, लेकिन मेरे चाहने से भला क्या होता है? जाता है वो जिसे जाना ही होता है। आखिर सूरज अलविदा कहके चला ही गया जाते जाते थोड़े और रंगों को बिछाएं, शायद उन आँखों को उसे कहना था शुक्रिया जो आखिर तक उसके साथ रहे, अपनी नमी को छुपाएं। वो सुंदरता मेरे नसीब में हमेशा के लिए शायद थी ही नहीं, मैंने भी आस लगाई थी उस चीज़ की जो कभी मुमकिन थी ही नहीं। फिर भी अंत में जीवन में मेरे